ख़बर जहां मिलती है अपने होने की,
हम उस मंजिल पर भी खोए खोए हैं।
गुनाह इश्क़ अगर है तो ग़म नहीं,
वो आदमी ही क्या जो एक भी ख़ता न करे।
लो मैं आखों पे हाथ रखत हूँ,
तुम अचानक कहीं से आजाओ।
लगता है हम ही अकेले हैं समझदार,
हर बात हमें ही समझाई जा रही है।
निगाह-ए-इश्क़ का अजीब ही शौक देखा,
तुम ही को देखा और बेपनाह देखा।
बहुत ज़ोर से हँसे थे हम, बड़ी मुद्दतों के बाद,
आज फ़िर कहा किसी ने, मेरा ऐतबार कीजिये।
किस वास्ते लिक्खा है हथेली पे मेरा नाम,
मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो मिटा क्यूँ नहीं देते।
लाख दिये जला के देख तु अपनी गली में,
रोशनी तो तब होगी जब हम आयेगे।
उसकी हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकू,
ढूंढ़ने उसीको चल हूँ जिसे कभी पा भी न सकू।
अपनें हाथों मे दुआओं की तरह उठा लूँ तुम को,
जो मिल जाओ तो किसी खज़ाने की तरह सम्भालू तुमको।
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